गांधीवादी अन्ना हजार के अभियान पर काफी मत-मतान्तर है। प्रमुख राजनीतिक दलों के लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इसके विरोध में हैं। कुछ दल जनांदोलनों के दबाव में अन्ना के पक्ष मे होने का दिखावा कर रहे हैं।
यह गंभीर स्थिति है। मेरा मानना है कि राष्ट्रहित में चल रहे इस अभियान के मामले में मतभिन्नता बनी रही तो देश में संकट गहराता जाएगा। ...और जब हमारी आंखें खुलेंगी, तब तक चिड़िया चुग गई होगी खेत। फिर तो पछता कर भी क्या होगा।
इस संदर्भ में जर्मनी के मार्टन नीमोलर की पंक्तियां याद आती है-
पहले वो आए साम्यवादियों के लिए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं साम्यवादी नहीं था
फिर वो आए मजदूर संघियों के लिए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं मजदूर संघी नहीं था
फिर वो यहूदियों के लिए आए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
फिर वो आए मेरे लिए
और तब तक बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
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