Tuesday, September 29, 2009

प्रभाष जोशी प्रकरण : अहसानमंद हैं गाली नहीं दें।

उमा
नहीं मालूम यह कौन सी हवा चली कि लोग अपने दौरों में कीर्तिमान स्थापित करनेवालों को गाली देकर अपनी कालर ऊंची कर रहे हैं। क्रिकेट या टेनिस से मेरी दिलचस्पी मैदान में भारत या भारतीय की मौजदूगी रहने तक सीमित है। लेकिन प्रभाष जी ने खेल पत्रकारिता को जो कलेवर, मिजाज और तेवर दिए वह किसी खेल पत्रकार के बूते की बात नहीं। विषय कोई भी हो, वो अपनी कंटेंट को जिस तरह खोलते हैं, जैसा रिदम पैदा करते हैं विषय की जटिलता या प्रसंग से वाकफियत की कोई जरूरत नहीं होती। आखिर हिंदी का कौन पत्रकार इसे मानने को तौयार नहीं। उन्होंने एक अखबार से/में जो कुछ किया वह हिंदी पत्रकारिता का मानक हुआ। परिदृश्य में उनकी मौजूदगी प्रसंग को अर्थवान बना देती थी।

दुर्भाग्य ही है कि हिंदी पट्टी की नई बिरादरी जो अभी-अभी मीडिया में प्रवेश ही कर रही है, उसे इन चीजों को देखना-सुनना, परखना-गुनना, सीखना-समझना चाहिए। आखिर जिस साक्षात्कार को लेकर लोग वितंडा खडा कर रहे हैं, क्या उसे समग्रता से, विषय को समूचेपन में उन्होंने देखा है। उन्होंने ब्राह्मण की, ब्राह्मणत्व की चर्चा जरूर की, पर कहीं भी उसे स्थापित करने के लिए तर्क नहीं गढ़े। आखिर सदियों का अभ्यास शारीरिक संरचना, व्यवहार, कौशल व उसके बाद संस्कार को कैसे अप्रभावित रहने देंगे।

यह ठीक है कि उन्होंने किसी के चुनाव प्रचार में सभा को संबोधित कर दिया। आखिर कोई तो बता दे कि इस दुनिया की किसी भी सभ्यता का नायक सभी मायने में आदर्श रहा। मेरा तो मानना है कि सभी नायक लात की पैदाइश थे। यदि उनकी सीमाएं लोगों को स्वीकार्य हैं तो प्रभाष जी तो वह मूर्ति नहीं बने। आखिर उनके दाय को देखते हुए, इन चीजों पर स्वस्थ चर्चा संभव नहीं थी। हमें जिनका कर्जदार होना चाहिए, हम उन्हें गरियाकर कालर ऊंची करके खुश हो लेते हैं।

यह सब मैं इसलिए नहीं लिख रहा कि मुझे उनकी कृपा प्राप्त है, या कृपा की अपेक्षा है। मैंने 14 सालों तक कस्बे में पत्रकारिता की है। और बड़े अखबारों में प्रभावी पदों पर रहने का मौका मिला। चीजों को विकृत होते हुए, विकृति के कारणों को खुली आंखों देखा। अखबार नहीं आंदोलन का नारा बुलंद करनेवाले अखबार में समन्वयक व फीचर प्रभारी का पद इसलिए छोड़ दिया कि प्रबंधन अपनी दिलचस्पी के अनुसार चीजों को चलाने की छूट पा गया था। आज खूब खूशी-खुशी मीडिया से विदा होकर सामाजिक कार्य के क्षेत्र में हूं।

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